मस्तकों के झुण्ड मैं ,एक मस्तक मेरा भी है
सपनो के पीछे भागती भीड मैं ,एक कदम मेरा भी है
एक दूसरे से आंगे जाने की होड़ मैं , एक गोची मेने भी दी है
लड़खड़तें कदमो से गिरते मुसाफिर को ,संभालते हाथों मैं ,एक हाथ मेरा भी हैं
अनजाने लोगो से घिरे इस सफर मैं ,कुछ हाथ जाने अनजाने छू गए है
कुछ छूट गए है
कुछ छोड़ दिए गए है
कुछ स्पर्श आज भी मन मैं है
अंजानो की भीड़ मैं , अपनों को खोजती निगाहो मैं ,एक निगाह मेरी भी है
लाखों की भीड़ मैं अकेलेपन से तड़पती सांसो मैं एक सास मेरी भी है
इस लम्बे सफर मैं कुछ लम्भे हमने रुक कर गुज़ारे हैं
बीते लम्हों को याद किया हैं
कुछ हसीन लम्ब्हे
कुछ गमगीन लम्ब्हे
बस जब याद किया तो चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान छायी रही
बीते लंभो को फिर जीने की फरियादों मैं , एक फ़रियाद मेरी भी है
टूटे रिश्तो के मोतियों को फिर पिरोने की कोशिशो मैं एक कोशिश मेरी भी है
भीड़ मैं चले थे ,भीड़ मैं मिल जाना है
आज नज़रो मैं हैं , कल ओज़हल हो जाना है
पता है हमें हमारे कदमो तक के निशान नहीं बचेंगे
बस चाहत है तो हमें बस आस्मां छूने की
कुछ पल तारो की तरह जगमगाले , फिर तो उन्हें भी टूट के गिर जाना है
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