देखता हूँ मैं , चाय के टपरे पर काम करने वाले 6 साल के सोहन को
सुबाह बच्चों को स्कूल जाते देख , उसकी नम आँखों को
और यों खड़े हो कर देखने पर मालिक से बिना बात पर पिट जाने को
और दुकान पर बढ़े लोगों की तीस भरी खिलखिलाहट को
क्या उसे हक़ नहीं मुस्कराने का
क्या उसे हक़ नहीं सपनों की नींद मैं खो जाने का
क्या उसे हक़ नहीं ग़रीबी के पिंजरे को तोड़ उड जाने का
क्या उसे हक़ नहीं उसकी हमउम्र बच्चों के साथ स्कूल जाने का
क्या उसे हक़ नहीं ग़रीबी के पिंजरे को तोड़ उड जाने का
क्या उसे हक़ नहीं उसकी हमउम्र बच्चों के साथ स्कूल जाने का
क्या उसकी नन्ही छोटी कोमल कलाई बनी है, भारी भोज उड़ाने को
क्या उसका कोमल चंचल मन बना हैं गहरे सदमें सहने को
जिसके चेहरे पर मुस्कराहट और हाथों मैं कलम होनी चाहिए
क्यों हैं उसके चेहरे पर मायूसी और हाथों पर छाले
क्या उसका कोमल चंचल मन बना हैं गहरे सदमें सहने को
जिसके चेहरे पर मुस्कराहट और हाथों मैं कलम होनी चाहिए
क्यों हैं उसके चेहरे पर मायूसी और हाथों पर छाले
कब तक ये स्कूल की दिवारो से स्कूल के अंदर झांकता रहेगा
कब तक ये प्यार की पुच्कार का हक़दार , अपने मालिकों की डाट खाता रहेगा
कब ये भी कहेंगे मुझे बड़े होकर डॉक्टर इंजीनियर बनना है
कब ये कहेगा मुझे पेट नहीं सपनों की उड़ान भरना है
सोहन को महंगे खिलोने नहीं चाहिए , वोह मिट्टी के बने ट्रक से खेल लेता है
उसे वाटर किंगडम की सेर नहीं चाहिए , वोह पेहली बारिश मैं भींग लेता है
उसे महंगी कार नहीं चाहिए ,वोह साइकिल के पुराने टायर को उड़ेल उड़ेल चल लेता है
पर उसे स्कूल की अच्छी शिक्षा और खाने को अछा खाना और सबसे जादा आपका साथ चाहिए
उसे वाटर किंगडम की सेर नहीं चाहिए , वोह पेहली बारिश मैं भींग लेता है
उसे महंगी कार नहीं चाहिए ,वोह साइकिल के पुराने टायर को उड़ेल उड़ेल चल लेता है
पर उसे स्कूल की अच्छी शिक्षा और खाने को अछा खाना और सबसे जादा आपका साथ चाहिए
कसूर क्या है इसका , की ये ग़रीब घर मे पैदा हुआ है
नहीं कसूर हमारा है , जो ये देख कर समज कर भी इसका बचपन आवारा है
जब तक गलियों मैं छोटे बच्चो का बचपन खोता रहेगा
फिर एक सोहन ऐसे ही रोता रहेगा ,और अपना ख़ूबसूरत बचपन खोता रहेगा
नहीं कसूर हमारा है , जो ये देख कर समज कर भी इसका बचपन आवारा है
जब तक गलियों मैं छोटे बच्चो का बचपन खोता रहेगा
फिर एक सोहन ऐसे ही रोता रहेगा ,और अपना ख़ूबसूरत बचपन खोता रहेगा
Ese lakho sohan apne bachpan ko kho rahe hain roz , iss poem ko niche diye button se share karein ya fb wall per post karein aur jada se jada logo tak pohchaye.......Tabhi ayenge acche din